* कोरोना वायरस क्या है? 24/072020 कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है। इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। यह वायरस दिसंबर में सबसे पहले चीन में पकड़ में आया था। इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है। कोरोना से मिलते-जुलते वायरस खांसी और छींक से गिरने वाली बूंदों के ज़रिए फैलते हैं। कोरोना वायरस अब चीन में उतनी तीव्र गति से नहीं फ़ैल रहा है जितना दुनिया के अन्य देशों में फैल रहा है। कोविड
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30/6/2020 जाट नायक - चूड़ामन जाट चूड़ामन सिंह चूड़ामन के पिता ब्रजराज की दो पत्नियाँ थीं– इन्द्राकौर तथा अमृतकौर। दोनों ही मामूली ज़मींदार परिवार से थीं। चूड़ामन की माँ, अमृतकौर चिकसाना के चौधरी चन्द्रसिंह की पुत्री थी। उसके दो पुत्र और थे– अतिराम और भावसिंह। वे दोनों भी मामूली ज़मींदार (भूमिधारी) थे। सम्भवतः चूड़ामन सिनसिनी पर शत्रु का अधिकार होने के बाद डीग, बयाना और चम्बल के बीहड़ों के जंगली इलाक़ों में छिप गया होगा। वह 'मारो और भागो' की छापामार पद्धति से लूटपाट करता था। चूड़ामन को जनता का समर्थन प्राप्त था। चूड़ामन स्वंय अपने प्रति निष्ठावान था। जाट-लोग कठोर जीवन व्यतीत करते थे। वे न दया चाहते थे और न दया करते थे। चूड़ामन कर्मठ और व्यावहारिक व्यक्ति था। उसने जाटों को उन्नत एवं
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27/6/2020 गोकुला जाट- भारतीय इतिहास के गौरवशाली नायक विश्व की सभ्यताओं तथा संस्कृतियों के सृजन तथा विकास में भारत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राचीनतम देशों में होने के कारण यह देश विश्व की अनेक घुमक्कड़ जातियों, कबीलों तथा काफिलों की शरणस्थली रहा है। यूनानी, ईरानी, शक, हूण, पठान तथा मुगल समय-समय पर भारत में घुसपैठ करते रहे हैं, परन्तु वे सभी शीघ्र ही या तो यहां के जनजीवन में समरस हो गये या पराजित होकर भाग गये। 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में मुगल बाबर भी भारत में एक विदेशी, आक्रमणकारी तथा लुटेरे के रूप में आया था। उसने मजहबी उन्माद तथा जिहाद की भावना से इस देश के कुछ भाग में लूटमार की, परन्तु वह यहां के जनजीवन को अस्त-व्यस्त न कर सका। यदि केवल बाबर से लेकर औरंगजेब (1526-1707 ई.) के काल की कुछ प्रमुख घटनाओं का विश्लेषण करें तो सहज ही जानकारी हो जाएगी कि उस समय यहां के प्रमुख हिन्दू समाज ने उसका तीव्र प्रतिकार