27 /6 /2020
अखंड भारत के वीर सपूत राजा राम जाट -
भारत में औरंगज़ेब का शासन चल रहा था और हिन्दुओं का जीना मुश्किल हो गया था। औरंगज़ेब, जिसने अपने पिता को ही कैद कर लिया था, जिसने तख्त के लिए अपने भाइयॊं को ही मार दिया था वह भारत के हिन्दुओं को कैसे शांती से जीने दे सकता था? हिन्दुओं पर औरंगज़ेब के अत्याचार दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे थे। औरंगज़ेब से लोहा लेने एक वीर बहादुर जाट तय्यार हो गया जिसका नाम था राजाराम। राजाराम जाट, भज्जासिंह का पुत्र था और सिनसिनवार जाटों का सरदार था। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था, वह एक साहसी सैनिक और विलक्षण राजनीतिज्ञ था। उसने बड़ी चतुराई से जाटों के दो प्रमुख क़बीलों-सिनसिनवारों और सोघरियों (सोघरवालों) को आपस में मिलाया। सोघर गाँव सिनसिनी के दक्षिण-पश्चिम में था। रामचहर सोघरिया क़बीले का मुखिया था। राजाराम और रामचहर सोघरिया शीघ्र ही मुघलों के अत्याचारों का विरॊध करने लगे।
सिनसिनी से उत्तर की ओर, आऊ नामक एक समृद्ध गाँव था। यहाँ मुघलों का सैन्य दल नियुक्त था। लगभग 2,00,000 रुपये सालाना मालगुज़ारी वाले इस क्षेत्र में व्यवस्था बनाने के लिए एक चौकी बनाई गयी थी। इस चौकी अधिकारी का नाम था लालबेग, जो एक नीच पशु प्रव्रुत्ती का व्यक्ति था। एक दिन एक अहीर अपनी पत्नी के साथ गाँव के कुएँ पर विश्राम के लिए रुका। लालबेग का एक कर्मचारी उधर से गुज़र रहा था, वह अहीर युवती की अतुलनीय सुन्दरता को देखता है और तुरन्त लालबेग को ख़बर देता है। लालबेग अपने सिपाही भेजकर अहीर पती और पत्नी को जबरन अपने चौकी पर लाने को कहता है। उसके सिपाही पती को तो छोड़ देतें हैं लेकिन पत्नी को लालबेग के निवास में भेज देते हैं।
यह खबर आग की तरह फैल जाती है और राजाराम के कानों में पड़ती है। राजाराम ठान लेता है की वह मुघलों को सबक सिखा के ही रहेगा। उसने अपने सैन्य को युद्ध के लिए तय्यार किया और लालबेग को मारने की यॊजना बनाई। यॊजना के अंतर्गत वह अपने सिपाहियों के साथ गोवर्धन में वार्षिक मेले में जानेवाली घास की बैल गाड़ियों में छुप जाता है। लालबेग को अंदाज़ा भी नहीं था की राजाराम और उसके सिपाही घास के अंदर छुपे हुए हैं और वह गाड़ियों को अंदर जाने की अनुमति देता है। चौकी को पार करते ही राजारम और सिपाहियों ने गाड़ियों में आग लगा दिया। उसके बाद भयंकर युद्ध हुआ और उसमें लालबेग मारा गया।
इस युद्ध के बाद राजाराम ने अपने क़बीले को सुव्यवस्थित सेना बनाना प्रारम्भ कर दिया। अस्त्र-शस्त्रों से युक्त उसकी सेना अपने नायकों की आज्ञा मानने को हमेशा तय्यार रहती थी। राजाराम ने जाट-प्रदेश के सुरक्षित जंगलों में छोटी-छोटी क़िले नुमा गढ़ियाँ बनवादी। इन पर गारे की (मिट्टी की) परतें चढ़ाकर मज़बूत बनाया गया जिन पर तोप-गोलों का असर भी ना के बराबर था। राजाराम की चर्चे चारों दिशा में होने लगी। उसने मुघल शासन से विद्रोह कर उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उसने धौलपुर से आगरा तक की यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति से 200 रुपये लेना शुरू किया। इस एकत्रित धन को राजाराम अपने सैन्य को प्रशिक्षित करने में लगाता, जो मुघलों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर मारती थी। जिस प्रकार मुघलों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा था उसी प्रकार राजाराम उनके मकबरों और महलों को तोड़ते थे। राजाराम के भय से मुघलों ने बाहर निकलना बन्द कर दिया था।
राजाराम की वीरता की बात औरंगज़ेब के कानों तक भी पहुंची। उसने तुरन्त कार्रवाई की और जाट- विद्रोह से निपटने के लिए अपने चाचा, ज़फ़रजंग को भेजा। राजाराम ने उसको भी धूल चटाई। उसके बाद औरंगजेब ने युद्ध के लिए अपने बेटे शाहज़ादा आज़म को भेजा। लेकिन उसे वापस बुलाया और आज़म के पुत्र बीदरबख़्त को भेजा। बीदरबख़्त बालक था इसलिए ज़फ़रजंग को प्रधान सलाहकार बनाया। बार-बार के बदलावों से शाही फ़ौज में षड्यन्त्र होने लगे। राजाराम ने मौके का फ़ायदा उठाया, बीदरबख़्त के आगरा आने से पहले ही राजाराम ने मुग़लों पर हमला कर दिया।
सन् 1688, मार्च में राजाराम ने सिकंदरा में मुघलों पर आक्रमण किया और 400 मुगल सैनिकों को काट दिया। कहते हैं की राजाराम ने अकबर और जहांगीर के कब्र को तोड़ कर उनकी अस्थियों को बाहर निकाला और जला कर राख कर दिया।
"ढाई मसती बसती करी,खोद कब्र करी खड्ड,
अकबर अरु जहांगीर के गाढ़े कढ़ी हड्ड"।
मनूची का कथन है कि जाटों ने काँसे के उन विशाल फाटकों को तोड़ा। उन्होंने बहुमूल्य रत्नों और सोने-चाँदी के पत्थरों को उखाड़ लिया और जो कुछ वे ले जा नहीं सकते थे, उसे उन्होंने नष्ट कर दिया था। राजाराम के साहस की चर्चा होती थी और मुघल शासक उनसे डरते थे। जिस युद्ध के बीज औरंगज़ेब के अत्याचारों ने बोए थे उसे राजाराम ने नष्ट कर दिया। औरंगज़ेब के अत्याचार, हिन्दू मन्दिरों के विनाश और मन्दिरों की जगह पर मस्जिदों का निर्माण करने से जनता के मन में बदले की भावना पनप चुकी थी। इसी कारण से लोग मुघल शासन के विरुद्द विद्रोह करने लगे थे।
राजाराम एक शूर वीर नायक की तरह उभर आया और मुघलॊं को उसने धूल चटाई। 4 जुलाई 1688 को मुघलों से युद्ध करते समय धोखे से उन पर मुघल सैनिक ने पीछे से वार किया और वो शहीद हो गए। राजाराम का सिर काटकर औरंगज़ेब के दरबार मे पेश किया गया और रामचहर सोघरिया को जिंदा पकड़कर आगरा ले जाया गया जहां उनका भी सिर कलम कर दिया गया। हमारी किताबें हमें इन शूर-वीर नायकों के बारे में नहीं बताती और ना ही कोई इन पर सिनेमा बनाता है। ऐसा करने से भारत की सेक्यूलरिस्म खतरे में आ जाती है। हिन्दु राजाओं को दहशतगर्द बताकर मुघल मतांदों को महानायक बताना सेक्युलरिस्म है। भारत के सच्चे इतिहास को छुपाकर झूठ फैलाकर वर्षों से लोगों को मूर्ख बनाया गया है। सत्य को चाहे लाख छुपाए लेकिन सत्य नहीं छुपता और एक न एक दिन उजागर हॊता ही है।
नमस्कार आगे का इतिहास कल के आर्टिकल में -
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Enghish trans-
27/6/2020
Ram Jat, the valiant son of united India -
Ram Jat, the valiant son of united India -
Aurangzeb was ruling in India and it became difficult for Hindus to live. How could Aurangzeb, who had imprisoned his father, who had killed his own brothers for the throne, allow the Hindus of India to live peacefully? Aurangzeb's atrocities on Hindus continued to increase day by day. To take the iron from Aurangzeb became a Veer Bahadur Jat Tayyar named Rajaram. Rajaram Jat was the son of Bhajjasinh and the chief of Cincinnavar Jats. He was rich in versatility, was a courageous soldier and a brilliant politician. He cleverly merged the two major Jat tribes - the Sinsinavars and the Sogharis (Sogharwals). The village of Soghar was to the south-west of Cincinnati. Ramchahar was the head of the Sogharia clan. Rajaram and Ramchahar Sogharia soon started opposing the atrocities of the Mughals.
To the north from Cincinnati, there was a prosperous village called Aau. Here a Mughal army team was appointed. An outpost was built to make arrangements in this area with an annual cargo of around Rs 2,00,000. The name of this garrison officer was Lalbeg, who was a person of lowly animal instinct. One day an Ahir stayed with his wife for a rest at the village well. As an employee of Lalbeg was passing by, he sees the incomparable beauty of the Ahir girl and immediately informs Lalbeg. Lalbeg sends his soldiers and asks them to forcibly bring Ahir's husband and wife to his outpost. His soldiers leave the husband but send the wife to Lalbeg's residence.
This news spreads like fire and falls in Rajaram's ears. Rajaram is determined to teach the Mughals a lesson. He prepares his military for war and plans to kill Lalbeg. Under the plan, he hides with his soldiers in the bullock carts of grass going to the annual fair in Govardhan. Lalbeg had no idea that Rajaram and his soldiers are hiding inside the grass and he allows the trains to enter. Rajaram and the soldiers set the vehicles on fire as they crossed the outpost. Then a fierce battle ensued and Lalbeg was killed in it.
After this war Rajaram started making his clan a well-organized army. His army, armed with weapons, was always ready to obey his heroes. Rajaram made small fortresses in the protected forests of Jat-Pradesh. They were made strong by mounting layers of mud (clay) on which the impact of cannon-bullets was negligible. Rajaram's discussion started in all four directions. He rebelled against the Mughal rule and challenged them to war. He started charging Rs 200 per person for the journey from Dhaulpur to Agra. This money was collected by Rajaram to train his army, who used to hunt and kill the Mughals. Just as the Mughals broke Hindu temples, Rajaram used to break their tombs and palaces. Fearing Rajaram, the Mughals stopped going out.
Rajaram's bravery also reached Aurangzeb's ears. He immediately acted and sent his uncle, Zafarjung, to deal with the Jat-rebellion. Rajaram also dusted him. Aurangzeb then sent his son Shahzada Azam to the war. But he was called back and sent to Azam's son Bidarbakht. Bidarbakht was a child, so made Zafarjung the principal advisor. Repeated changes led to conspiracies in the royal army. Rajaram took advantage of the opportunity, Rajaram attacked the Mughals before Bidarbakht came to Agra.
In March 1688, Rajaram attacked the Mughals at Sikandra and killed 400 Mughal soldiers. It is said that Rajaram broke the tomb of Akbar and Jahangir, took out their ashes and burned them to ashes.
"Two and a half spiced curry, dug grave curry ravine,
Akbar Aru Jehangir's "Gauged Kadhi Bones".
Manuchi says that the Jats broke those huge gates of bronze. They uprooted precious gems and gold and silver stones and destroyed what they could not carry. Rajaram's courage was talked about and the Mughal rulers were afraid of him. Rajaram destroyed the war whose seeds were sown by Aurangzeb. Aurangzeb's tyranny, destruction of Hindu temples and construction of mosques in place of temples had created a feeling of revenge in the public. For this reason people started rebelling against the Mughal rule.
Rajaram emerged like a heroic hero and dusted the Mughals. On 4 July 1688, while fighting with the Mughals, the Mughal soldier attacked them from behind and they were martyred. Rajaram was beheaded and presented to the court of Aurangzeb and Ramchahar Sogharia was captured alive and taken to Agra where he too was beheaded. Our books do not tell us about these heroic heroes nor does anyone make cinema on them. By doing this, India's secularism is in danger. Describing Hindu kings as terrorists, it is secularism to call Mughal Matandas as great. People have been fooled over the years by spreading lies by hiding the true history of India. May hide truth, but does not hide truth, and one day it is exposed.
Hello, further history in tomorrow's article -
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